व्यावसायिक और यांत्रिक भाषा के रूप में हिन्दी भाषा को समृद्ध करना अनिवार्य
जैनशिल्प समाचार, सिवाना - हिंदी को महात्मा गांधी ने जनमानस की भाषा कहा। जबकि, इसी हिंदी की खड़ी बोली को अमीर खुसरो ने अपनी भावनाओं को प्रस्तुत करने का माध्यम बनाया। इसके अलावा हिंदी को हजारों लेखकों ने अपनी कर्मभूमि बनाया। लेकिन, देश के संविधान में राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि, सिर्फ राजभाषा की ही उपाधि दी गई। कुछ तथाकथित लोगों की वजह से हिंदी को वह सम्मान नहीं मिल सका जिसकी उसे जरूरत है। हिंदी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिंदी भी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी। क्योंकि, भारत मे अधिकतर क्षेत्रों में ज्यादातर हिंदी भाषा बोली जाती थी इसलिए हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया गया। इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिंदी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिंदी- दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए हजारों लेखकों द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। जीएस वेलफेयर फाऊंडेशन की संस्थापिका गीतांजलि महापात्रा ने बताया कि भाषा ही समाज के विकास का आधार होता है यदि किसी देश को लंबे समय तक गुलाम बनाना है तो उसकी भाषा को नष्ट कर दो वह देश स्वत: ही नष्ट हो जाएगा। यदि उसे समृद्ध बनाना है तो उसकी भाषा को विज्ञान और प्रौद्योगिकी कंप्यूटर और समान्य तकनीक से जोड़ते हुए बौद्धिक स्तर पर व्यावसायिक और यांत्रिक भाषा के रूप में इसे समृद्ध करना अनिवार्य है। जीएस वेलफेयर फाऊंडेशन के चैयरमैन सुर्या राजपुरोहित ने बताया कि हिंदी लोकभाषा है, जनभाषा है। कबीर के शब्दों में, यह बहता नीर है, कूपजल नहीं। जिस भाषा को जनता अपना लेती है, वह अमर हो जाती है। तो हिन्दी अमर हो चुकी है। शासन-प्रशासन, अध्ययन-अध्यापन, ज्ञान-विज्ञान, कला-दर्शन, व्यापार-मनोरंजन, बाज़ार और रोज़मर्रा के कामकाज की भाषा है। विशिष्टजन उसकी चिन्ता न करें। चिन्ता उस भाषा की करें जो मृतप्राय है। जीएस वेलफेयर फाऊंडेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कैलाश सिंह राजपुरोहित ने बताया कि 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है , ऐसा इसलिए है क्योंकि इस दिन भारत के संविधान सभा में देवनागरी लिपि में लिखी गई। हिंदी भाषा को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा घोषित किया था। मातृभाषा से हम अपनी संस्कृति से जुड़े रहते हैं। आज आवश्यकता है कि हिंदी को हम विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों एवं कार्यालयों में ही नहीं अपितु अपने हृदय में भी धारण करें ।