अगर कोई व्यक्ति काम-वासना के पार चला जाता है तो वह हृदय केंद्र से प्राण को छोड़ता है : ओशो
ओशो मानते हैं कि हर व्यक्ति को अपनी मृत्यु होने वाली है उसके पूर्व उसे पूर्वाभास हो जाता है। किसी को बहुत जल्दी तो किसी को मरने के कुछ दिन पूर्व ही इसका आभास हो जाता है। ओशो रजनीश ने वैसे तो मृत्यु के संबंध में कई प्रवचन दिए है, लेकिन सभी लोगों को मृत्यु के पूर्व पता चल सकता है इसकी जानकारी नहीं होती। यहां पर पाठकों के लिए कुछ प्रवचनों के अंश प्रस्तुत है वह पाठक पसंद करेंगे।
योग सूत्र के गहन गंभीर ज्ञान पर ओशो का लेक्चर सोपक्रमं निरूपक्रमं च कर्म तत्संयमादपारान्तज्ञानमरिष्टेभये वा। - योग सूत्र
अर्थात: ‘सक्रिय व निष्क्रिय या लक्षणात्मक व विलक्षणात्मक- इन दो प्रकार के कर्मों पर संयम पा लेने के बाद मृत्यु की ठीक-ठीक घड़ी की भविष्य सूचना पाई जा सकती है।’
इसे दो प्रकार से जाना जा सकता है। या तो प्रारब्ध को देखकर या फिर कुछ लक्षण और पूर्वाभास है जिन्हें देखकर जाना जा सकता है। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति मरता है तो मरने के ठीक नौ महीने पहले कुछ न कुछ होता है। साधारणतया हम जागरूक नहीं होते हैं। और वह घटना बहुत ही सूक्ष्म होती है। मैं नौ महीने कहता हूं- क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में इसमें थोड़ी भिन्नता होती है।
यह निर्भर करता है : समय का जो अंतराल गर्भधारण और जन्म के बीच मौजूद रहता है। उतना ही समय मृत्यु को जानने का रहेगा। अगर कोई व्यक्ति गर्भ में नौ महीने रहने बाद जन्म लेता है, तो उसे नौ महीने पहले मृत्यु का आभास होगा। अगर कोई दस महीने गर्भ में रहता है तो उसे दस महीने पहले मृत्यु का अहसास होगा, कोई सात महीने पेट में रहता है तो उसे सात महीने पहले उसे मृत्यु का एहसास होगा। यह इस बात पर निर्भर करता है कि गर्भधारण और जन्म के समय के बीच कितना समय रहा।
मृत्यु के ठीक उतने ही महीने पहले हारा में, नाभि चक्र में कुछ होने लगता है। हारा सेंटर को क्लिक होना ही पड़ता है। क्योंकि गर्भ में आने और जन्म के बीच नौ महीने का अंतराल था : जन्म लेने में नौ महीने का समय लगा, ठीक उतना ही समय मृत्यु के लिए लगेगा। जैसे जन्म लेने के पूर्व नौ महीने मां के गर्भ में रहकर तैयार होते हो, ठीक ऐसे ही मृत्यु की तैयारी में भी नौ महीने लगेंगे। फिर वर्तुल पूरा हो जाएगा। तो मृत्यु के नौ महीने पहले नाभि चक्र में कुछ होने लगता है।
जो लोग जागरूक हैं, सजग हैं, वे तुरंत जान लेंगे कि नाभि चक्र में कुछ टूट गया है; और अब मृत्यु निकट ही है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग नौ महीने लगते हैं। या फिर उदाहरण के लिए, मृत्यु के और भी कुछ अन्य लक्षण तथा पूर्वाभास होते हैं, कोई आदमी मरने से पहले, अपने मरने के ठीक छह महीने पहले, अपनी नाक की नोक को देखने में धीरे-धीरे असमर्थ हो जाता है, क्योंकि आंखें धीरे-धीरे ऊपर की और मुडऩे लगती है। मृत्यु में आंखे पूरी तरह ऊपर की और मुड़ जाती है। लेकिन मृत्यु के पहले ही लौटने की यात्रा का प्रारंभ हो जाता है।
ऐसा होता है : जब एक बच्चा जन्म लेता है, तो बच्चे की दृष्टि थिर होने में करीब छह महीने लगते हैं। साधारणतया ऐसा ही होता है। लेकिन इसमें कुछ अपवाद भी हो सकते है- बच्चे की दृष्टि ठहरने में छह महीने लगते हैं। उससे पहले बच्चे की दृष्टि थिर नहीं होती।
इसीलिए तो छह महीने का बच्चा अपनी दोनों आंखें एकसाथ नाक के करीब ला सकता है। और फिर किनारे पर भी आसानी से ला सकता है। इसका मतलब है बच्चे की आंखें अभी थिर नहीं हुई हैं। जिस दिन बच्चे की आंखें थिर हो जाती हैं फिर वह दिन छह महीने के बाद का हो या दस महीने के बाद का हो, ठीक उतना ही समय लगेगा, फिर उतने ही समय के पूर्व आंखें शिथिल होने लगेंगी। और ऊपर की और मुडऩे लगेंगी। इसीलिए भारत में गांव के लोग कहते हैं, निश्चित रूप से इस बात की खबर उन्हें योगियों से मिली होगी- कि मृत्यु आने के पूर्व व्यक्ति अपनी ही नाक की नोक को देख पाने में असमर्थ हो जाता है।
और भी बहुत सी विधियां हैं, जिनके माध्यम से योगी निरंतर अपनी नाक की नोक पर ध्यान देते हैं। वे नाक की नोक पर अपने को एकाग्र करते हैं। जो लोग नाक की नोक पर एकाग्रचित होकर ध्यान करते हैं, अचानक एक दिन वे पाते हैं कि वे अपनी ही नाक की नोक को देख पाने में असमर्थ हैं, वे अपनी नाक की नोक नहीं देख सकते हैं। इस बात से उन्हें पता चल जाता है कि मृत्यु अब निकट ही है।
योग के शरीर विज्ञान के अनुसार व्यक्ति के शरीर में सात चक्र होते हैं। पहला चक्र है मूलाधार, और अंतिम चक्र है सहस्त्रार, जो सिर में होता है। इन दोनों के बीच में पांच चक्र और होते हैं। जब भी व्यक्ति की मृत्यु होती है; तो वह किसी एक निश्चित चक्र के द्वारा अपने प्राण त्यागता है। व्यक्ति ने किस चक्र से शरीर छोड़ा है, वह उसके इस जीवन के विकास को दर्शा देता है। साधारणतया तो लोग मूलाधार से ही मरते हैं, क्योंकि जीवनभर लोग काम-केंद्र के आसपास ही जीते हैं। वे हमेशा सेक्स के बारे ही सोचते हैं, उसी की कल्पना करते हैं, उसी के स्वप्न देखते हैं, उनका सभी कुछ सेक्स को लेकर ही होता है- जैसे कि उनका पूरा जीवन काम-केंद्र के आसपास ही केंद्रित हो गया हो। ऐसे लोग मूलाधार के काम-केंद्र से ही प्राण छोड़ते हैं। लेकिन अगर कोई व्यक्ति प्रेम को उपलब्ध हो जाता है और काम-वासना के पार चला जाता है तो वह हृदय केंद्र से प्राण को छोड़ता है। और अगर कोई व्यक्ति पूर्णरूप से विकसित हो जाता है, सिद्ध हो जाता है तो वह अपनी ऊर्जा को, अपने प्राणों को सहस्त्रार से छोड़ेगा।
और जिस केंद्र से व्यक्ति की मृत्यु होती है, वह केंद्र खुल जाता है, क्योंकि तब पूरी जीवन ऊर्जा उसी केंद्र से निर्मुक्त होती है... जिस केंद्र से व्यक्ति प्राणों को छोड़ता है, व्यक्ति का निर्मुक्ति देने वाला बिंदु स्थल खुल जाता है। उस बिंदु स्थल को देखा जा सकता है।
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन
साभार : ओशो रजनीश प्रवचन माला पतंजलि के योग सूत्र- भाग-4