करुणा, प्रेम, वात्सल्य और अद्भुत सहनशक्ति का स्रोत है नारी : राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रतजी

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करुणा, प्रेम, वात्सल्य और अद्भुत सहनशक्ति का स्रोत है नारी : राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रतजी

राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रतजी भगवान महावीर यूनिवर्सिटी, वेसु में 20 से 22 सितंबर तक आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के 49वें वार्षिक महिला सम्मेलन ‘संरक्षणम्’ के पहले दिन सम्मेलन में सम्मिलित हु। तेरापंथ जैन समुदाय के आचार्य महाश्रमणजी यहाँ चातुर्मास व्यतीत कर रहे हैं, उनकी भी विशेष उपस्थिति रही। 
इस अवसर पर राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी ने महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय नारीशक्ति ने हमेशा भारत की संस्कृति और परंपराओं को गौरवान्वित किया है। संस्कारवान बच्चा माँ और परिवार के लिए सबसे बड़ी पूंजी है। भारत के ऋषि-मुनियों ने प्राचीनकाल से ही सोलह संस्कारों की अवधारणा दी है। गर्भ संस्कार ऋषि परंपरा से स्वीकृत है। 
उन्होंने कहा कि राष्ट्र का निर्माण आधुनिक सुख-सुविधाओं के विकास से नहीं, बल्कि वीर माताओं के सतीत्व के उजागर होने से होता है। समाज और संस्कृति को उन्नति या पतन की ओर ले जाना नारीशक्ति पर ही निर्भर है, ऐसा मत व्यक्त करते हुए उन्होंने नारियों से राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनने का आह्वान किया। 
करुणा, प्रेम, वात्सल्य और अद्भुत सहनशक्ति का स्रोत नारी है – ऐसी प्रेरणादायक परिभाषा देते हुए उन्होंने प्रकृति द्वारा नारी को दी गई अपार शक्ति के भंडार का परिवार, समाज और राष्ट्रहित में उपयोग करने की शिक्षा दी। 
राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि प्राचीन, मध्य और वर्तमान, इन तीन कालों में विभाजित भारत का इतिहास विविधतापूर्ण रहा है। प्राचीन काल में नारी पुरुष के समान या उससे भी अधिक सम्मानित थी, लेकिन मध्यकाल में स्थिति दयनीय हो गई। मध्यकाल में महिलाओं पर जितना अत्याचार हुआ, उतना ही वर्तमान में महिलाएँ आगे बढ़ रही हैं। 
उन्होंने परिवार और समाज की चालक शक्ति समान नारीशक्ति की सराहना करते हुए कहा कि समाज और संस्कृति की जननी नारीशक्ति ही है। भारतीय सनातन संस्कृति सदियों से नारी को देवी रूप में मानती आई है। जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवों का वास होता है, ऐसा भाव वेद-पुराणों ने सिखाया है। आधुनिक युग में भी अध्यात्म और परिवारवाद की संस्कृति को संजोने वाले सभी महिला सदस्यों और पदाधिकारियों को राज्यपाल ने बधाई दी। 
राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी ने चातुर्मास व्यतीत कर रही साध्वीजीओं के तप-त्याग की सराहना करते हुए कहा कि साध्वीजीओं ने अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण के लिए समर्पित किया है। मानवीय मूल्यों की स्थापना करने वाले साधु-साध्वी नई पीढ़ी को दिशा दिखा रहे हैं।