पारस जैसा ही पारसनाथ का जीवन

jainshilp samachar

जैनशिल्प समाचार, सूरत

सूरत शहर के पांडेसरा में निवास करने वाले पारस नाथ देवनारायण प्रसाद शुक्ल मूलतः उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला के सीसवा बुजुर्ग गांव के रहने वाले हैं। पढने में काफी तेज होने के कारण उनके पिता देवनारायण ने उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाई। पारस नाथ ने कानपुर विश्व विद्यालय में से सन 1978 में आयुर्वेदाचार्य (बी.ए.एम.एस.) की डिग्री प्राप्त की। पारस नाथ का जीवन बचपन से ही भगवान शंकर में लगा रहता था। इसी कारण उनका प्रेम प्रकृति के प्रति अधिक है। खास कर पशु, पक्षी, जानवर, चिटियां इत्यादि जीव के प्रति उनका काफी लगाव है। पारस नाथ ने उत्तर प्रदेश का गांव सीसवा बुजुर्ग छोडकर सालों से सूरत शहर को ही कर्मभूमि बना लिया है। एक डॉक्टरेट की पदवी होने के बावजूद उनका जीवन दरिद्रता में गुजर रहा है। आज पांडेसरा में एक नेक डॉक्टर के द्वारा दिए जाने वाले 50 रूपये से 100 रूपये में से वह अपना जीवन गुजारा तो करते ही है लेकिन इसमें से भी पैसे बचाकर चिटियां, पक्षी, पशुओं के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं। उनकी मुलाकात की तो उन्होंने एक ही वाक्य में पूरे जीवन के बारे में बता दिया। 

उन्होंने कहा कि -

मैं जहां देखता हूँ, मुझे मिट्टी का कण दिखाई देता है।

अर्थात इस जीवन में तुम कुछ करो या ना करो लेकिन एक ना एक दिन यह मिट्टी में ही मिल जाने वाला है। पूरा जगत एक मिट्टी के समान ही है। प्रकृति अगर चाहती है तो एक सेकन्ड के 100 वें हिस्से में पृथ्वी को वायु में परिवर्तित कर सकती है। लेकिन मानव के अहं के कारण इस धरती पर प्रेम, विश्वास जैसे कई गुण खत्म हो गए हैं। पृथ्वी पर अलग-अलग मानवरूपी जीव प्रगट होते है, कोई कोई मानव अपना खुद का जीवन ही लोगों की सेवा, सुविधा के लिए खत्म कर देते हैं, तो कोई पूरा जीवन अहम में रहकर खुद को बादशाह समझकर, मैं कभी मिटने वाला नहीं हूं ऐसा मानकर दूसरों पर अत्याचार और पीडा देने में बाझ नहीं आते लेकिन समय आने पर प्रकृति उन्हें क्षण में मिट्टी में मिला देती है। 
संत कबीर ने कहा है कि जात-पात मत पूछिये पूछ लीजिए साधु से ज्ञान । अर्थात संत कबीर जात, पात को मानते नहीं थे। जात, पात मनुष्य ने अपने लाभ के लिए खडे किए है। इसमें से निकालने के लिए डॉ. बाबा साहब आंबेडकर ने संविधान लिख दिया, इस संविधान की विश्व में चर्चा है। 5000 साल पूर्व भगवान बुद्ध ने शुद्र को बौद्ध भीख्खु संघ में शामिल कर सभी मानव एक ही है इसका प्रमाण दिया और जातिवादी लोगों का खंडन किया।