प्रभु-प्रेम का अद्भुत खेल- संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
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परमात्मा के सच्चे खेल या परमात्मा की लीला का दुनिया के खेल से कोई लेना-देना नहीं है। परमात्मा का अलग खेल चल रहा है। यह वह खेल है जो प्रेम के नियम पर आधारित है। परमात्मा ने प्रेम से सृष्टि की रचना की। उसने बड़े प्यार से सभी प्राणियों को बनाया है। यह एक ऐसा खेल है जिसमें परमात्मा हमसे प्रेम करते हैं और वे चाहते हैं कि हम भी उनसे प्रेम करें। यह प्रेम सिर्फ परमात्मा एवं प्रत्येक जीवित प्राणी के बीच का प्रेम नहीं अपितु इसमें प्रभु के समस्त परिवार के सदस्यों को भी प्रेम करना है। इसका अर्थ यह है कि हमें परमात्मा की सृष्टि के समस्त प्राणियों, जैसे हमारे संगी-साथियों के अलावा इस जगत के सभी अन्य निचले प्राणियों के प्रति भी प्रेम हो।
इंसान को उसके रुपये-पैसे की जमा पूंजी के आधार पर जाँचा या परखा नहीं जाता बल्कि उसके द्वारा दूसरों को दिए गए प्रेम के आधार पर जाँचा-परखा जाता है। क्या कभी हमने परमात्मा से प्यार किया है? क्या कभी हमने अपने संगी-साथियों से प्यार किया है? क्या कभी हमने समस्त सृष्टि से प्यार किया है? इस तरह का प्यार हमारे विचारों, शब्दों और कार्यों द्वारा जाहिर होता है जो दूसरों के प्रति दर्षाई गई दयालुता में झलकता है। प्रभु के प्रति प्रेम का यह भाव दूसरों की परवाह करने और निष्काम भाव से उनकी सेवा करने में व्यक्त होता है।
प्रभु-प्रेम का खेल क्या है? पिता-परमेष्वर प्रेम और आनंद के महासागर हैं। जब हम उनसे जुड़ते हैं तो हम भी परमानंद के महासागर में डुबकी लगाते हैं। यह संसार के किसी भी खेल की तुलना में अधिक मजेदार है। यह बच्चों की बोर्ड गेम खेलने से, यह बहुत सारा पैसा बनाने से, यह किसी भी स्पोर्ट्स इवेंट को देखने से और यह सभी सांसारिक सुखों से बेहतर है। यह वह खुषी है जिसकी तुलना में इस दुनिया में पाए जाने वाले सारे आनंद फीके हैं।
जब हम इस संसार को छोड़ते हैं तब हमें इस बात से परखा जाता है कि हम अपने जीवन में दूसरों से कितना प्रेम करते थे? इस पर हमारे जीवन की जाँच इस तथ्य पर आधारित होती है कि हमने दूसरों को कितना प्रेम दिया है और उन्हें कितनी खुषी दी है? जब हम इस जीवन के अंत में अपने आप पर एक सरसरी निगाह डालते हैं तब वह संपूर्ण प्रेम जो हमने दूसरों को दिया और वह खुषी जो हमारे द्वारा दूसरों को मिली उसे हम स्वयं अपने अंदर महसूस करते हैं।
हम जो समय प्रभु के प्रेम से जुड़ने में लगाते हैं वो हमारी आध्यात्मिक चेतनता को बढ़ाता है और हमें इस भौतिक शरीर से ऊपर उठने की कला में भी सक्षम बनाता है ताकि हमारी रूह अंतर के रूहानी मंडलों में उड़ान भर सके और पिता-परमेष्वर से हमेषा-हमेषा के लिए एकमेक हो जाए।
आईये! हम देखें कि जब जीवन के अंत में हमें अपने रुपये-पैसे और जायदादों को यही छोड़कर जाना होगा तो हम अपने साथ केवल वही समय साथ ले जाएंगे जो केवल हमने प्रभु के नाम का जाप करने में लगाया है। हम अपने साथ एक ऐसा खाता ले जाएंगे जिसमें कोई अच्छे या बुरे कर्म नहीं होंगे बल्कि एक साफ रिकॉर्ड होगा जिसमें ध्यान-अभ्यास में लगाए गए समय और संत-महापुरुषों की याद में बिताए गए समय का लेखा-जोखा होगा। प्रभु के प्रेम में लगाया गया समय ही सही मायनों में प्रभु के साथ प्रेम का खेल खेलना है।