करवा चौथ और उसका आध्यात्मिक महत्त्व - संत राजिंदर सिंहजी महाराज
jayanti solanki
जैनशिल्प समाचार
करवा चौथ एक पवित्र पर्व है। इसे हम सुहागिनों का त्यौहार भी कहते हैं। इस दिन हिन्दू नारियां परमेष्वर से अपने-अपने पति की लंबी आयु और तंदुरुस्ती के लिए मंगल कामना करती हैं। यह जो व्रत है यह सबसे कठिन व्रत है क्योंकि
इस व्रत के मौके पर सारा दिन निर्जल रहना पड़ता है, पानी भी नहीं पीते कुछ खाते भी नहीं। इस दिन हमारी जो हिन्दू महिलाएं हैं वे सज-संवरकर रात को ईश्वर के सामने प्रण लेती हैं कि वो मन, वचन, कर्म से अपने पति के प्रति पूर्ण समपर्ण की भावना दिखाएंगी।
क्या कभी हमने विचार किया कि इस व्रत का अभिप्राय क्या है? इस व्रत का भी अन्य व्रतों की भांति एक आध्यात्मिक महत्त्व है। हमारे देश के ज़र्रे-ज़र्रे में आध्यात्मिकता रची हुई है। हमारे सारे त्यौहार, उत्सव, और व्रत आत्मोन्नति के लिए ही बनाये गये थे, और ये व्रत आदि अंततः मोक्ष व प्रभु-प्राप्ति के लिए ही रखे जाते थे। परन्तु धीरे-धीरे हम इनका वास्तविक अर्थ भूल गये तथा सांसारिक रस्मो-रिवाज़ों व तामसिक वासनाओ में ही उलझकर रह गये। वास्तव में करवा-चौथ के व्रत की यह कहानी, सुबह तारों की छाँव में व्रत रखते है और शाम को चाँद देखकर व्रत खोलते है, वास्तव में प्रतीक है एक ऐसे फ़ासले का जो हमें आध्यात्मिकता की एक मंज़िल से दूसरी मंज़िल तक ले जाता है; यह व्रत आत्मा-परमात्मा के मिलन की एक मंज़िल का वर्णन है, तारो से चाँद तक की यात्रा का वर्णन है। इसमें दिन-भर स्त्रियों को कोई काम नहीं करना चाहिए । उन्हें सारा दिन प्रभु की याद मे व्यतीत करना चाहिए, न कि टी.वी. देखने, सिनेमा देखने, अथवा तम्बोला खेलने या गपशप करने में।
इतिहास साक्षी है कि प्रत्येक धर्म में किसी न किसी ऐसे दिन या रात का वर्णन अवश्य है जिसमें कहा जाता है कि समस्त प्राणी, समस्त जीव-जन्तु प्रभु को याद करते है। मुसलमान भाइयों मे जो ईद का त्यौहार मनाया जाता है, उसमें भी चाँद का ज़िक्र आता है, और वे तभी ईद मनाते हैं जब चाँद देख लेते हैं। मगर यह तो बाहर का चाँद है, यह जो हर रात को दिखाई भी नहीं देता। परन्तु जो अंदर का चाँद है, उसे हम हर समय देख सकते है। वही वास्तविक चंद्रमा है। अंतर के चाँद को देखने से ही हम करवा-चौथ के व्रत का वास्तविक लाभ उठा पाएंगे, यह व्रत तभी मुबारक़ है जब हम सुबह अपने अंतर में तारे देखें सारा दिन प्रभु की याद में व्यतीत करें, भजन व सिमरन करें और शाम को अपने अंतर में चाँद देखें । इसी क्रम में सूर्य तथा फिर अपने सत्गुरु के नूरानी स्वरूप को देखें , जो कि हमारे दिलों के चाँद है, जो कि हमारी आत्मा के चाँद है। यही करवा-चौथ को मनाने का सबसे सही और अच्छा तरीक़ा है। - संत राजिंदर सिंहजी महाराज