नाम है आदमी तो क्या, अस्ल में रूहे-इश्क हूँ सारी जमीं है मेरा घर, सारा जहां मेरा वतन - संत दर्शन सिंह

नाम है आदमी तो क्या, अस्ल में रूहे-इश्क हूँ सारी जमीं है मेरा घर, सारा जहां मेरा वतन - संत दर्शन सिंह

जैनशिल्प समाचार (वडोदरा) संत दर्शन सिंह जी महाराज का जन्म 14 सितम्बर 1921 को, रावलपिंडी, पाकिस्तान के कोन्ट्रिला गाँव में हुआ। आप पाँच वर्ष की आयु से ही अध्यात्म से जुड गये थे और आपकी परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई जो आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत था। आपके पिता का नाम परम संत कृपाल सिंह जी महाराज और माता का नाम माता कृष्णावंती था। 15 वर्षों का उनका आध्यात्मिक कार्यकाल, उनके असीम प्रेम, दया एवं नम्रता के लिए जाना जाता है। संत दर्शन सिंह जी महाराज को लाखों लोग सदी के महान संत और मानव एकता के समर्थक के रूप में याद करते हैं। संत कृपाल सिंह जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के रूप में आपने ‘सावन कृपाल रूहानी मिशन’ की स्थापना की। आपने परम संत कृपाल सिंह जी महाराज के आध्यात्मिक कार्य को आगे बढाते हुए, विश्व भर में मिशन के 450 केन्द्रों की स्थापना की। आपने दिल्ली में मिशन के मुख्यालय कृपाल आश्रम की स्थापना की ताकि दुनियाभर से आने वाले अध्यात्म के जिज्ञासु सत्संग एवं ध्यान-अभ्यास की गतिविधियों में शामिल हो सकें। संत दर्शन सिंह जी महाराज ने हजारों भाई-बहनों को दीक्षा देकर प्रभु की ज्योति और शृति के साथ जोडा। उन्होंने समझाया कि अध्यात्म, एक सकारात्मक एवं व्यावहारिक मार्ग है जिसमें व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति और ध्यान-अभ्यास द्वारा दिव्य जीवन जीने के साथ-साथ, अपने परिवार, समाज, और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा सकता है। अपने उपदेशों के अनुरूप, संत दर्शन सिंह जी महाराज अपनी आजीविका स्वयं अर्जित करते थे। भारत सरकार में 36 वर्ष तक कार्यरत रहने के बाद, आप 1979 में डिप्टी सैक्रेटरी के पद से सेवानिवत्त हुए। अपने पद से जुडी जिम्मेदारियों को निभाते हुए आपने परमार्थ का कार्य भी किया। अपनी सूफी शायरी के माध्यम से, संत दर्शन सिंह जी महाराज को उर्दू और फारसी की अपनी गजलों के कारण उन्हें भारत के एक महान सूफी शायर के रूप में जाना जाता है। उनके काव्य संग्रहों, मंजिले-नूर (रोशनी की मंजिल), तलाशे-नूर (रोशनी की खोज), मताए-नूर (रोशनी का भण्डार), जादा-ए-नूर (ज्योति मार्ग) और मौजे-नूर (ज्योति की तरंगें) के लिए आपको चार बार उर्दू अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। संतमत के प्रसार के लिए अपनी चार विश्व-यात्राओं 1978, 1983, 1986 और 1988 के दौरान उन्होंने यूरोप, उत्तरी अमरीका और दक्षिणी अमरीका का दौरा किया। नवंबर, 1988 को दिल्ली में संत दर्शन सिंह जी महाराज की अध्यक्षता में 15वां मानव एकता सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें हजारों लोगों के अलावा अनेक धार्मिक व सामाजिक नेताओं ने भाग लिया। संत दर्शन सिंह महाराज ने 30 मई 1989 को इस भौतिक संसार से विदा ली। उनके आध्यात्मिक कार्यों को उनके पुत्र, वर्तमान सदगुरू, संत राजिन्दर सिंह  महाराज संपूर्ण विश्व में फैला रहे हैं।