नेतृत्व के नैतिक पहलू - संत  राजिन्दर सिंह जी महाराज

Jainshilp Samachar : Jayanti M. Solanki (Owner/Editor)

नेतृत्व के नैतिक पहलू - संत  राजिन्दर सिंह जी महाराज

जैनशिल्प समाचार

एक अच्छा लीडर या नेता होने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि क्या किया जाए और उसे क्यों किया जाए? केवल उत्साह, प्रेरणा, योग्यता, और कामों को सही तरीक़े से करना ही पर्याप्त नहीं है। यह जानना भी बहुत आवष्यक है कि सही काम आख़िर है क्या? इसके लिए ज़रूरत है नैतिक नेतृत्त्व की। नैतिक नेतृत्त्व के दो मुख्य पहलू हैंः एक अपने सच्चे स्वरूप को जानना और दूसरा मानवजाति की सेवा करना। सच्चे नेता को अपने आप के बारे में जानकारी होनी चाहिए ताकि वह अपने आस-पास या संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के कार्यों को सही दिषा-निर्देष दे और अपने पीछे चलने वालों को भी सही मार्ग-दर्षन प्रदान करे। इस संबंध में महापुरुषों ने सदियों से हमे एक स्पष्ट और सरल संदेष दिया हैः ”अपने आपको जानो!“
नेतृत्त्व में यह ज़रू री है कि ”हम कौन हैं?“ और ”हम क्या करते हैं?“ इसका बात का मनन करें। एक नेता की तरह आचरण करने के अलावा हमारे अंदर एक सच्चे नेता के गुण, व्यवहार, और आदतें होना भी ज़रूरी है। एक सच्चा नेता अपने अस्तित्व की सच्चाई का सामना करने की हिम्मत रखता है। वह अपने उदाहरण द्वारा दूसरों को प्रेरित करता है कि वे भी सच्चाई से ज ुड़ते हुए प्रभु की आदर्श संतान बन सके । ऐसा नेता अपने हृदय और आत्मा के अंदर झाँकता है, आत्म-विश्लेषण करता है और अपने भीतर की आत्म-षक्ति के संपर्क मे आता है। वह अपनी आत्मा की असीम शक्ति के साथ जुड़ जाता है, तथा चरित्र व इच्छा शक्ति के अद्वितीय बल का प्रदर्षन करता है लेकिन फिर भी उसका व्यवहार बेहद नम्रता और करुणा से  भरपूर होता है। सच्चा नेतृत्त्व केवल एक ख़ास ढंग से आचरण करना ही नहीं है बल्कि सच्चा नेतृत्व तो वो होता है जो हमारी भीतरी सच्चाई का प्रतिबिंब हो।
कई लोग सिर्फ़ जीवन की साधारण दिनचर्या में ही व्यस्त रहते हैं-जागना, तैयार होना, खाना,  पैसा कमाने के लिए काम करना, वापस घर आना, और अगले दिन फिर इसी दिनचर्या का पालन करना। हमारा पूरा जीवन बड़े होने, नौकरी या व्यवसाय करने, परिवार की देखभाल करने, रिटायर होने, और फिर इस संसार को छोड़कर चले जाने में ही व्यतीत हो जाता है। ऐसी ज़िंदगी जीते हुए हम सोचने लगते हैं कि क्या यही जीवन है? तब हमें यह समझ में आ जाता है कि कोई उच्चतर शक्ति है जो हमारा मार्गदर्षन कर रही है।
यही आध्यात्मिक शक्ति समस्त नैतिकता, सद्गुणों, ताक़त और जीवन का स्रोत है। इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि हम उसे क्या कहकर पुकारते हैं-परमात्मा, चेतनता या आत्मा। यह शक्ति हममें से हरेक के भीतर मौजूद है और हमे जान दे रही है। एक बार जब हम इस अनंत आध्यात्मिक शक्ति के संपर्क में आ जाते हैं, तो हमें यह अनु भव हो जाता है कि यह शक्ति सच्चे नेताओं के गुणों का स्रोत है।नेतृत्त्व का दूसरा पहलू है सेवा। इतिहास के महान व्यक्तियों ने कहा है कि अपने से पहले दूसरों की सेवा करना ही एक सुखी और संतुष्टिपूर्ण 
जीवन की कुंजी है। एक नेता को सबसे पहले एक सेवक होना चाहिए। दूसरों की सेवा करने से ही हमें उनका नेतृत्त्व करने का अधिकार मिलता है।

सच्चा नेता बनने का अर्थ है, ”सच्चा इंसान बनना।“ नेतृत्त्व अतिगहन और निरंतर चलने वाले आत्म-विष्लेषण से ही उत्पन्न होता है। यह व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास और सेवा के प्रति समर्पित जीवन का चयन करना है। यदि हम अपने आंतरिक आध्यात्मिक स्रोत के साथ जुड़ जाएँ तो हम ऐसे  नेता बन सकते हैं जिनका जीवन दूसरों को भी प्रेरणा प्रदान करेगा।